According to Vedic astrology, each month of pregnancy is governed by a specific planet. These planets have a profound impact on the developing fetus. In the first month, Venus, in the second Mars, in the third Jupiter, in the fourth Sun, in the fifth Moon, in the sixth Saturn, in the seventh Mercury, in the eighth Adhan-lagnesh and in the ninth month Moon has an effect. According to the position and effect of these planets, the nature and future of the fetus is determined. Therefore, it is considered important to take measures for the peace and positive effect of these planets during pregnancy.
गर्भावस्था के प्रत्येक मास का अधिपति ग्रह
1️⃣ पहला मास शुक्र ( वीर्य रूप में रहता है। )
2️⃣ द्वितीय मास मंगल ( रक्त बनने लगता है )
3️⃣ तीसरा मास गुरू ( शारीरिक फैलाव होने लगता है।)
4️⃣ चतुर्थ मास सूर्य ( heartbeat आ जाती है और आत्मा प्रवेश कर चुकी होती है।)
5️⃣ पंचम मास चंद्रमा ( जल उचित मात्रा )
6️⃣ छठा मास शनि ( नस /स्नायु विकसित होने लगती है )
👉 छठे मास में बच्चे का जन्म हो गया तो बच्चा बचेगा नहीं)
7️⃣ के सातवां महीना बुध (त्वचा विकसित होने लगती है )
👉 ( जन्म ले लिया तो बच सकता है क्योंकि त्वचा विकसित हो गयी है आवरण ढक चुका है )
8️⃣ आठवां मास आघान लग्न का लग्नेश अथवा पंचमेश ( risky month for pregnancy )
9️⃣ नवम मास चंद्रमा (वजन व हरकत उचित हो जाती है )
दशम मास ( सूर्य ) जच्चा/बच्चा अलग हो जाते हैं
जिस माह में समस्या हो उस ग्रह से सम्बंधित उपाय भी अवश्य ले और कुण्डली में पंचम भाव Fifth House का विचार अवश्य करें 5th में पाप ग्रह शनि, राहू, केतु, या नैसर्गिक ग्रह बैठे हों तब उस ग्रह से सम्बंधित उपाय अवश्य करें अन्यथा समय से पहले गर्भपात हो जना या डिलीवरी केस बिगड़ने की सम्भावना बनी रहती है।
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