Untold Secrete ज्योतिष के बहुत से ऐसे अनसुलझे रहस्य हैं जिसके बारे में लोगों के मन में भ्रम की स्थिति है । 💥 लोगों की तरह तरह की बातें सुनकर वह भ्रमित हो जाते हैं और सही उपाय बताने पर भी ठीक से नहीं कर पाते हैं इसलिए उन सभी गलतफहमी को दूर करने के लिए यह लेख लिख रहा हूँ ।
💢 नीच राशि में विराजमान ग्रह 💢
कोई भी ग्रह ज़रूरी नहीं कि नीच राशि में नीच ही होता उस विशेष राशि में किसी विशेष अंश तक ही नीच माने जाते हैं।
✅ सूर्य - तुला राशि में 10 अंश तक ।
✅ चंद्र - वृश्चिक राशि में 3 अंश तक ।
✅ मंगल - कर्क राशि में 28 अंश तक ।
✅ बुध - मीन राशि में 15 अंश तक ।
✅ गुरु - मकर राशि में 5 अंश तक ।
✅ शुक्र - कन्या राशि में 27 अंश तक ।
✅ शनि - मेष राशि में 20 अंश तक ।
ऊपर जो अंश दिया है उस अंश से ऊपर उस राशि में विराजमान होने के बाद ग्रह नीच राशि में नहीं माना जाता है ।
👉 वास्तव में किसी भी ग्रह के नीच राशि में विराजमान होने का अर्थ खराब या गंदा नहीं है । मात्र उसके बल में कमी होना है । आम भाषा में हम किसी व्यक्ति को नीच बोलते हैं इसका मतलब होता है वह खराब है परंतु ज्योतिष में नीच शब्द का प्रयोग का मतलब वह बहुत ही कमजोर है वह जिस राशि में विराजमान है वहां पूर्ण रूप से कार्य नहीं कर पा रहा है । और वह उस घर से सम्बंधित कार्य में जातक से ज़्यादा मेहनत करवायेगा अगर यह योग उपचय भाव में बनता है तब इसके परिणाम अच्छे देखे गये है और नीच ग्रह अगर वक्री हो तब भी अच्छे परिणाम मिलते हैं बस ज़रूरत होती कि ग्रह चाहता क्या है ( अगर आप अपनी कुण्डली का विश्लेषण करवाना चाहते हैं तब हमसे संपर्क कर सकते हैं ) www.vedicastrologer.online
🌞 जैसे सूर्य एक तारा है चंद्रमा 🌒 एक उपग्रह है परंतु ज्योतिष के भाषा में उन्हें भी ग्रह कहा जाता है उसी प्रकार किसी ग्रह को उच्च का मतलब उसके बल में वृद्धि है नीच का मतलब उसके बल में बहुत ज्यादा कमी है। अब यदि किसी जन्म कुंडली में उसको लाभ देने वाला ग्रह नीच राशि में विराजमान है तब इसका अर्थ यह होगा कि उस भाव से संबंधित पूर्ण लाभ प्राप्त नहीं होगा तो हमें यहां उसे और ज्यादा बल देने की आवश्यकता है ताकि वह नीच से बाहर निकले। ऊपर आपने देखा कि ग्रह एक निश्चित डिग्री के ऊपर जाने के बाद नीच राशि में नहीं माना जाता है । इसका यह अर्थ हुआ कि यदि ग्रह नीच राशि में विराजमान है और यदि हम उसे बली करते हैं और वह उस अंश से ऊपर चला जाएगा तो नीचे नहीं माना जाएगा ।
असल में नीच राशि मैं विराजमान ग्रह को प्रबल किया जाता है। या देखा जाता है कि दान कर सकते हैं या नहीं कुंडली विश्लेषण करके देखना पड़ता है यदि मंत्र जाप के माध्यम से कार्य हो जाता है तो ठीक है आवश्यकता पड़ने पर नीच राशि का रत्न धारण करना चाहिए या नहीं देखना पड़ता लग्नेश है या तत्कालीन योग कारक ग्रह हैं आदि।
💥 कुछ स्थिति में नीच भंग हो जाता है ।
👉 यदि कोई भी ग्रह नीच राशि में विराजमान है और जहां विराजमान है उसका स्वामी यदि उच्च राशि में विराजमान हो तो नीच भंग हो जाता है ।
👉 लग्न या चंद्रमा से केंद्र में कोई भी ग्रह नीच राशि में विराजमान है तो उसका नीच भंग हो जाता है ।
👉 यदि ग्रह जिस नीच राशि में विराजमान है उसका स्वामी लग्न या चंद्रमा से केंद्र में हो तो नीचे भंग हो जाता है ।
👉 यदि कोई ग्रह नीच राशि में विराजमान हो और उस राशि का स्वामी यदि उस ग्रह पर दृष्टि डाले तो नीचे भंग हो जाता है ।
👉 कोई ग्रह नीच राशि में विराजमान है परंतु उसके साथ ही उस राशि में उच्च होने वाला ग्रह भी विराजमान है तो नीच भंग हो जाता है ।
👉🏻 कोई ग्रह जिस राशि में नीच हो रहा हो उसी राशि का स्वामी अपनी ही राशि में बैठा हो तब भी नीच भंग हो जाता है।
👉ज्योतिष में एक यह भी सूत्र है यदि कोई ग्रह नीच राशि में विराजमान है एवं वक्री है तो वह अच्छा फल देता है । ऐसा क्यों होता है क्योंकि कोई भी ग्रह वक्री होने के बाद उसके बल में वृद्धि हो जाती है जैसे मान ले गुरु 4 अंश का है तब यह नीच माना जाएगा और यदि यहां गुरु वक्री हो जाता है तो 4 - 5 अंश की उसमें वृद्धि हो जाएगी और वह 5 अंश से ऊपर चला जाएगा और उसके नीच का दोष समाप्त हो जाएगा।
इसका अर्थ यही है कि यदि कोई भी ग्रह नीच राशि में विराजमान है और उसे बली करते हैं तो वह नीच राशि से बाहर आ जाएगा और अच्छा फल देगा । यह मेरा अनुभव है।
💢 ( परंतु आप स्वयं बिना कुंडली के विश्लेषण करवाएं नीच राशि का रत्न धारण नहीं कर सकते हैं एक योग्य ज्योतिषी ही परामर्श देगा कि आपको कहां धारण करना है या मंत्र जाप करना है ) www.vedicastrologer.online
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