Retrograde Jupiter वक्री बृहस्पति।
Retrograde Jupiter, a celestial phenomenon where the planet appears to move backward from Earth's perspective, is a time for introspection and revisiting past lessons. In Vedic astrology, Jupiter represents wisdom, expansion, and fortune. When retrograde, these energies turn inward, prompting us to reassess our beliefs, values, and the areas where we seek growth. An experienced Astro Bhagyaraj Gupt can provide valuable insights into how this retrograde phase impacts your individual birth chart, helping you navigate potential delays, rediscover hidden opportunities, and refine your spiritual and philosophical outlook. It's a period for internal review, leading to eventual, more profound external progress.
गुरू बृहस्पति कुंडली के पहले भाव में वक्री होकर विराजना जातक को विद्वान और गुणी बनाता है। स्वस्थ और आकर्षक शरीर प्रदान करता है। जातक सार्वजनिक जीवन में मान सम्मान प्राप्त करता है।
2. वक्री बृहस्पति का दूसरे भाव में होना जातक अनरगल खर्च करता है। धन संचय करने में परेशानी होती है। इन्हें पैतृक संपत्ति प्राप्त होती हैं, परंतु ये उसका महत्व नहीं समझ पाते हैं।
3. वैदिक में जातक की कुंडली में यदि गुरू वक्री अवस्था में तीसरे स्थान में बैठें हो तो उसका मिलाजुला प्रभाव मिलता है। जातक स्वयं के प्रयास से उच्च पद प्राप्त करता है। जातक धन संचय करने में कामयाब होता है। परंतु धन और पद उन्माद में अहंकारी हो जाता है।
4. कुंडली के चौथे भाव में बैठा वक्री बृहस्पति जातक को अहंकारी बनाता है। ऐसे जातक परिवार और समाज के प्रति उदार नहीं होते हैं। दूसरों के प्रति अपने मन पूर्वाग्रह रखते हैं। बिना मतलब दुश्मनी पाल बैठते हैं। जीवन में जातक धन तथा सम्मान हासिल करने में कामयाब होते हैं।
5. बृहस्पति वक्री (Jupiter Retrograde) होकर पंचम स्थान में बैठना जातक को अपने बच्चों के प्रति कठोर बनाता है। ऐसे जातक कई स्त्रियों से संबंध रखते हैं। ज्योतिष के अनुसार पंचम भाव में वक्री गुरु संतानसुख में भी बाधा उत्पन्न करता है।
6. पत्रिका के छठे भाव में वक्री गुरु का होना जातक को बलवाल को अपनाने वाला, शक्तिशाली और विरोधियों को परास्त करने में सक्षम बनाता है। जातक व्यापार केतुलना में नौकरी से अधिक लाभ प्राप्त होता है।
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7. सपत्म भाव में गुरू का वक्री होना जातक के लिए जातकों का विवाह के बाद भाग्योदय का कारक बनता है। जातक को जीवनसाथी उच्चकुल का धनवान तथा परोपकारी मिलता है।
8. कुंडली के आठवें भाव में वक्री का होना जातक को तंत्र- मंत्र विद्या में निपुण बना सकता है। अष्टम का वक्री गुरु यदि शुभ ग्रहों के साथ बैठा हो तो जातक को पैतृक धन प्राप्त करवाता है।
9. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पत्रिका के नवम भाव में वक्री बृहस्पति विराजना जातक को चार भवनों का स्वामी बनाता है। जातक का सरकारी उच्चाधिकारियों से अच्छा संबंध स्थापित होता है।
10. दशम भाव में वक्री गुरु वाले जातकों की प्रतिष्ठा अपने पिता तथा दादा से अधिक होती है। जातक धनी होता है। जातक गैर जिम्मेदारी भी हो सकता है। निर्णय क्षमता में कमी के कारण जातक कई मौके गंवा बैठते हैं।
11. कुंडली के एकादश भाव में वक्री गुरु हो तो जातक लगातार आगे बढ़ने का प्रयास करता है, परंतु इनका जीवनस्तर सामान्य ही रहता है। जातक की सोच भी छोटी होती है।
12. द्वादश भाव में गुरू का वक्री होना जातक से शुभ कार्यों में पैसे खर्च करवाता है। जातक के गुप्त शत्रु इन्हें परेशान करने की कोशिश करते हैं, परंतु ये आपको अधिक परेशान नहीं कर पाते हैं। #retrogradejupiter #retrogradeplanets
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