पंचक
आपने पंचक और गंडमूल नक्षत्रों के बारे में भी अक्सर सुना होगा। हमारे घर के बुजुर्ग अक्सर ये कहते हैं कि पंचक लग गया, या पंचक में कोई काम नहीं करना चाहिए या फिर इस बच्चे में गंडमूल दोष है या गंडमूल की पूजा करानी है आदि-इत्यादि। आखिर ये पंचक और गंडमूल या मूल है क्या। पहले जानते हैं पंचक के बारे में।
जब चंद्रमा कुंभ और मीन राशि पर होता है तब उस समय को पंचक कहते हैं। इसे शुभ नहीं माना जाता। इस दौराना घनिष्ठा से रेवती तक जो पांच नक्षत्र (घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती) होते हैं, उन्हें पंचक कहते हैं। इस दौरान आग लगने का खतरा होता है, इस दौरान दक्षिण दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए, घर की छत नहीं बनवानी चाहिए, पलंग या कोई फर्नीचर भी नहीं बनवाना चाहिए। पंचक में अंतिम संस्कार भी वर्जित है।
पंच-काल की रचना करने वाला नक्षत्र
पंचक का अर्थ होता है पांच दिन। प्रत्येक चंद्र माह में, पांच दिनों की एक ऐसी अवधि होती है जब चंद्रमा कुंभ राशि से होकर पांच नक्षत्रों, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती नक्षत्रों के ऊपर से गुजरता है। इस अवधि को पंचक कहा जाता है। किसी भी शुभ समारोह जैसे शादी आदि को आयोजित करने के लिए अवधि को सही नहीं माना जाता है।
गंडमूल
उसी तरह गंडमूल या मूल नक्षत्र को भी बेहद अशुभ माना जाता है। दरअसल नक्षत्रों के अलग अलग स्वभाव होते हैं और मूल नक्षत्र के तहत आने वाले आश्विन, आश्लेषा, मघा, मूला और रेवती नक्षत्रों को उग्र श्रेणी का माना जाता है। इन्हें ही मूल, गंडात या सतैसा भी कहा जाता है। जो लोग इसमें पैदा होते हैं, उनका जीवन बेहद उथल पुथल और तनावों से भरा होता है, इसीलिए बच्चों के जन्म के 27 दिन के बाद इसकी पूजा करवाई जाती है और इसके बुरे प्रभावों को खत्म किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह माना जाता है कि इन नक्षत्र में इनमें से कोई भी कार्य करने पर उक्त कार्य को पांच बार दोहराना पड सकता है
वैदिक ज्योतिष में जब भी हम नक्षत्रों की बात करते हैं, हमें इन पहलुओं को जानना जरूरी होता है। साथ ही आपके व्यक्तित्व और स्वभाव का आईना होते हैं ये नक्षत्र। आप मानें या न मानें लेकिन जिस नक्षत्र में आपका जन्म हुआ है, उसका असर कहीं न कहीं आपके व्यवहार, जीवन शैली और व्यक्तित्व पर जरूर पड़ता है।
मूल- नक्षत्र
नक्षत्रों के अलग अलग स्वभाव होते हैं और उनके अलग अलग फल भी होते हैं। कुछ नक्षत्र कोमल होते हैं कुछ कठोर और कुछ उग्र होते हैं। उग्र और तीक्ष्ण स्वभाव वाले नक्षत्रों को ही मूल नक्षत्र या गंडमूल नक्षत्र कहा जाता है। इस प्रकार हमारे पास मूल नक्षत्र आश्लेषा और माघ, ज्येष्ठा और मूल, रेवती और अश्विनी हैं। माना जाता है कि, जब किसी शिशु का जन्म इन नक्षत्रों में होता है तो इससे बालक के स्वास्थ्य की स्थिति, या फिर उसकी माँ की स्थिति या परिवार की स्थिति संवेदनशील हो जाती है। इन नक्षत्रों के सबसे महत्वपूर्ण चरणों की बात करें तो, आश्लेषा नक्षत्र का चौथा चरण, ज्येष्ठा नक्षत्र का चौथा चरण और रेवती नक्षत्र का चौथा चरण माना गया है। इसके अलावा माघ नक्षत्र का पहला चरण, मूल नक्षत्र का पहला चरण, और अश्विनी नक्षत्र का पहला चरण होता है। ये शिशु के जन्म के समय दोष का कारण बनते हैं, जिसे आमतौर पर गंड – मूलरिश कहा जाता हैइसके तहत पैदा हुए बच्चे का जीवित रहना बेहद नाज़ुक माना जाता है क्योंकि मूल नक्षत्र को बेहद ही अशुभ माना गया है। यदि शिशु का जन्म मूल नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है तो ये बच्चे के पिता के लिए हानिकारक साबित होता है, और यदि दूसरे चरण में हुआ है तो ये माँ के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। अगर तीसरे चरण में हुआ है तो, इससे माता-पिता को धन हानि होती है। ऐसी स्थिति में नक्षत्रों के दुष्प्रभाव को खत्म या कम करने के लिए ग्रह शांति के लिए पूजा-पाठ इत्यादि कराने की सलाह दी जाती है।
शादी-विवाह के लिए नक्षत्र मिलान
विवाह के लिए, राशि मिलान के अलावा, लड़के और लड़की के नक्षत्र का मिलान करना पड़ता है। ये दो तरीके से किया जाता है। एक तरीका होता है जिसमें लड़का-लड़की के गुण का मिलान किया जाता है और दूसरे तरीके में, नाडी दोष से बचना देखा जाता है। कैसा देखा जाता है इसकी जानकारी हम आपको संक्षिप्त में नीचे प्रदान कर रहे हैं।गुण मिलान:
जैसा हमने आपको पहले बताया, प्रत्येक नक्षत्र एक व्यक्ति के जीवन में कुछ गुण का प्रतिनिधित्व करते हैं। कुल मिलाकर नौ गुण देखे जाते हैं, जिनमें से प्रत्येक में चार अंक होते हैं। ऐसे में गुण मिलान का कुल योग बनता है 36 अंकों का। अगर लड़का-लड़की की कुंडली में सभी गुण मिलते हैं तो ये 36-36 गुण वाला रिश्ता कहा जाता है।
एक शादी को सुखी और संपन्न बनाने के लिए कम-से-कम 18 गुणों का मिलना आवश्यक बताया गया है। यानि इससे ऊपर हो सकता है, लेकिन इससे कम को कुंडली मिलान में अच्छा नहीं माना गया है। यदि लड़का और लड़की दोनों के नक्षत्र और गुण अनुकूल होते हैं तो उनका वैवाहिक जीवन खुशहाल रहता है, लेकिन वहीं अगर दोनों के नक्षत्र प्रतिकूल होते हैं तो उनका वैवाहिक जीवन कष्टमय और क्लेश भरा गुजरता है। एक बार नक्षत्र राशि में होने के बाद, गुण मिलान किया जा सकता है। देव गण नक्षत्र दोनों अन्य नक्षत्रों अर्थात मनुष्य और राक्षस गण नक्षत्रों के साथ तालमेल बैठा सकते हैं, हालाँकि मनुष्य और राक्षस गुण नक्षत्र कभी एक साथ तालमेल नहीं बिठा सकते हैं। इसे गण-महादोष कहा जाता है और अमूमन तौर पर मनुष्य गण और राक्षस गण के व्यक्तियों के बीच शादी ना किये जाने की सलाह दी जाती है।