नक्षत्र चरण फल : प्रत्येक नक्षत्र मे चार चरण होते है और एक चरण 3 अंश 20 कला का होता है। यह नवमांश जैसा ही है यानि इससे राशि के नौ वे भाग का फलित मिलता है। प्रत्येक चरण मे तीन ग्रह का प्रभाव होता है 1- राशि स्वामी, 2- नक्षत्र स्वामी, 3- चरण स्वामी।
अश्वनी नक्षत्र चरण फल:
प्रथम चरण : इसमे मंगल, केतु और मंगल का प्रभाव है। मेष 00 अंश से 03 अंश 20 कला। इसका स्वामी मंगल है। यह शारारिक क्रिया, साहस, प्रेरणा, प्रारम्भ का द्योतक है। जातक मध्यम कद, बकरे जैसा मुंह, छोटी नाक और भुजा, कर्कश आवाज, संकुचित नेत्र, कृश, धायल अथवा नष्ट अंग वाला होता है।
इसके गुणदोष - शारारिक सक्रियता, साहस, प्रोत्साहन, आवेगी बली. भावनावश परिणाम की बिना चिंता कार्य है। जातक नृप सामान, निर्भीक, साहसी, अफवाहो के प्रति आकर्षित, मितव्ययी, वासनायुक्त, भावुक होता है।
द्वितीय चरण : इसमे मंगल, केतु और शुक्र का प्रभाव है। मेष 03 अंश 20 कला से 06 अंश 40 कला। इसका स्वामी शुक्र है। यह अवबोध, अविष्कार, साकार कल्पना का द्योतक है। जातक श्याम वर्णी, चौड़े कन्धे, लम्बी नाक, लम्बी भुजा, छोटा ललाट, खिले नेत्र, मधुर वाणी, कमजोर जोड़ वाला होता है।
इसके गुणदोष - अवबोध, आविष्कारी, अश्विनीकुमार जैसी सदभावना, कल्पनाओ (भौतिक) को साकार करना है। जातक धार्मीक, हंसमुख, धनवान होता है।
तृतीय चरण : इसमे मंगल, केतु और बुध का प्रभाव है। मेष 06|40 से 10|00 अंश। इसका स्वामी बुध है। यह विनोद, संचार, फुर्ती, व्यापकता का द्योतक है। जातक काले बिखरे बाल, सुन्दर नेत्र व नाक, गौर वर्ण, वाकपटु, पतले जांध व नितम्ब वाला होता है।
इसके गुणदोष - विनोद, आदान-प्रदान, विस्तीर्ण योग्यता, दिमागी फुर्ती है। जातक विद्वान, ज्ञानवान, भोजन प्रेमी, भौतिकवादी, अशांत, तर्क आधारी, साहसिक होता है।
चतुर्थ चरण : इसमे मंगल, केतु और चन्द्र का प्रभाव है। मेष 10|00 से 13|20 अंश , इसका स्वामी चन्द्र है। यह चेतना, भावुकता, सहानुभूति का द्योतक है। जातक व्याकुल नेत्र, साहसी, ठिगना, नट अथवा नृत्यक, भ्रमणशील; खुरदरे नख, विरल कड़े रोम, कृश, भाई हीन होता है।
इसके गुणदोष - सामूहिक चेतना, महत्व, जानकारी, भावुकता है। जातक ईश्वर से डरने वाला, धार्मिक, पौरुषयुक्त, स्त्री संग प्रेमी, चरित्रवान, गुरुभक्त होता है।
भरणी नक्षत्र चरण फल
प्रथम चरण - इसका स्वामी सूर्य है। इसमे मंगल, शुक्र सूर्य का प्रभाव है। राशि मेष 13।20 से 16।40 अंश। नवमांश - सिंह। सृजन, स्वकेन्द्रित, संकल्प, दृढ़ निश्चय इसके गुणधर्म है।
जातक सिंह के सामान आँखे, मोटी नाक, छोड़ा ललाट, घनी भोंहे, घने पतले रोम, आगे का फैला शरीर होता है।
इसकी शिक्षा अच्छी होती है, यह ज्योतिषी, न्यायाधीश, आध्यात्म अध्यापक, नर्सरी टीचर आदि हो सकता है। जातक अहंकारी, कठोर प्रकृति वाला, शत्रुओ से रक्षा करने वाला, विशाल, चोरी की प्रवृत्ति वाला होता है।
द्वितीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे मंगल, शुक्र, बुध का प्रभाव है। राशि मेष 16।40 से 20।00 अंश। नवमांश कन्या। सेवा, संगठन कार्य प्रबंध, धैर्य, निस्वार्थता, परोपकार की भावना इसके गुणधर्म है।
जातक श्याम वर्ण, मृग सामान नेत्र, पतली कमर, कठोर पैर के पंजे, मोटा-लटकता पेट, मोटी भुजा व कंधे, डरपोक, बकवादी, सुयोग्य नृत्यक, डांस टीचर होता है।
जातक विपरीत लिंग का आशिक़, चतुर, मूर्तिकला का ज्ञानी, धर्मिक होता है। इस पाद मे प्रेम विवाह की सम्भावना रहती है।
तृतीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे मगल, शुक्र, शुक्र का प्रभाव है। राशि मेष 20।00 से 23।20 अंश। नवमांश तुला। समय मे सहमत होना या एक ही समय मे अनेक कार्य होना, अवधि विहीन प्रेम और रति, विपरीत लिंग का अत्यधिक आकर्षण, अभिलाषा की पूर्ति इसके गुणधर्म है।
जातक कड़े रोम वाला, चंचल, धवल नेत्र, रति निरत, कुलटा स्त्री का पति, हत्यारा, विशाल शरीर वाला होता है।जातक घमंडी, योगीन्द्र, पंडित, सामान्य स्वभावी, स्वयं का उद्योग करने वाला, अत्यधिक कामुक और कामातुर, वाचाल होता है।
चतुर्थ चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे मंगल, शुक्र, मंगल का प्रभाव है। राशि मेष 23।20 से 26।40 अंश। नवमांश वृश्चिक। अत्यधिक ऊर्जा, रूकावट इसके गुणधर्म है।
जातक वानर मुखी, भूरे केश, गुप्तरोग रोगी, हिंसक, असत्यवादी, धातादिक योग, मित्र से सदव्यवहारी होता है। यह विस्फोटक ऊर्जावान होता है, यदि ऊर्जा का प्रवाह ठीक हो, तो जातक अन्वेषक या अविष्कारक, स्त्री रोग विशेषज्ञ, छायाकार, पैथालॉजिस्ट, जासूस होता है।
जातक कुसत्संगी, क्रूर, अहंकारी, दुर्दम, झूठा, स्वेच्छाचारी, वाचाल, कुछ अच्छी आदते वाला होता है।
आचार्यो ने चरण फल सूत्रो मे बताया है परतु फलित मे बहुत अंतर है।
मानसागराचार्य : भरणी के पहले चरण मे चोर, दूसरे चरण मे काल भाषा हीन, तीसरे चरण मे योगीन्द्र, चौथे चरण मे निर्धन होता है।
यवनाचार्य : भरणी के पहले चरण मे त्यागी, दूसरे चरण मे धनी व सुखी, तीसरे चरण मे क्रूर कर्म करने वाला, चौथे चरण मे दरिद्र होता है।
कृतिका नक्षत्र चरण फल ।
प्रथम चरण - इसका स्वामी गुरु है। इसमे मंगल, सूर्य, गुरु, का प्रभाव है। राशि मेष 26।40 से 30।00 अंश। नवमांश धनु। यह परोपकार, निस्वार्थ, महानता, उदारता, इच्छाशक्ति, ताकत, सेना अनुशरण, शुभ लक्षणो का द्योतक है।
जातक लम्बा, क्रश, चौड़ा ललाट, लम्बे कान, अश्व मुखी, धूमने-फिरने वाला, ज्ञानी, निर्मम, बहुरुपिया होता है। जातक बुद्धिमान, अनुशासित, रोगी किन्तु दीर्घायु, अनेक प्रकार से संतोषी, अनेक उपाधिया प्राप्त होता है।
द्वितीय चरण - इसका स्वामी शनि। इसमे शुक्र, सूर्य, शनि का प्रभाव है। राशि वृषभ 30।00 से 33।20 अंश। नवमांश मकर। यह सदाचार, नीति, भौतिकता, मातृपक्ष का द्योतक है।
जातक श्यामवर्णी, विषम नेत्र, क्रूरदृष्टि, नीच, प्रकृति विरुद्ध, वैर-विरोध करने वाला होता है। जातक की मृत्यु मघा के अंत मे या रेवती नक्षत्र मे होती है।
जातक आध्यत्मिक व्यक्ति से नफरत करने वाला, धार्मिक साहित्य का विरोधी, दूसरो को धार्मिक ग्रंथो का विरोध करने के लिए प्रेरित करने वाला, यदाकदा यशस्वी होता है।
तृतीय चरण - इसका स्वामी शनि है। इसमे शुक्र, सूर्य, शनि का प्रभाव है। राशि वृषभ 33।20 से 36।40 अंश। नवमांश कुम्भ। यह मानवता, भविष्यवाद, प्राचीन सत्ता, कर्तव्य, ज्ञान का द्योतक है।
जातक गंभीर नेत्र वाला, टेड़े सर व मुख वाला, आत्मा से द्रवित, अल्पबुद्धि, प्रतिकूल कर्मी, असत्य और अधिक बोलने वाला होता है। जातक वीर, अभिमानी, शीघ्र गर्म होने वाला, वेश्यागामी, तुच्छ जीवन वाला होता है।
चतुर्थ चरण - इसका स्वामी गुरु है। इसमे शुक्र, सूर्य, गुरु, का प्रभाव है। राशि वृषभ 36।40 से 40।00 अंश। नवमांश मीन। यह शीलता, सूक्ष्म ग्राह्यता, परोपकारिता, रचना का द्योतक है।
जातक कोमल अंग, सुन्दर शरीर व नाक, बड़े नेत्र, यज्ञ व धर्म कार्यो में रुचिवान, स्थिर, शुभ लक्षण वाला, पालन-पौषण करने वाला, चोरी की आदत वाला, नम्र किन्तु घमंडी, चिंतित, व्याकुल, कष्टमय, रोगी, मानसिक मुसीबतो से त्रस्त रहता है।
आचार्यों ने चरण फल सूत्र रूप मे कहा है किन्तु फलादेश मे अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : प्रथम चरण मे तेजश्वी, दूसरे मे शास्त्र विज्ञानी, तीसरे मे शूर, चौथे मे दीर्घायु व पुत्रवान होता है।
मानसागराचार्य : प्रथम पाद मे शुभ लक्षणो से युक्त, द्वितीय मे यशस्वी, तृतीय मे पुत्रवान, चतुर्थ मे वीर होता है।
रोहिणी नक्षत्र चरण फल ।
प्रथम चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे शुक्र, चंद्र, मंगल का प्रभाव है। राशि वृषभ 40।00 से 43।20 तक। नवमांश मेष। यह शरीरिक सुख, आध्यात्म, भोग का द्योतक है।
जातक छोटा उदर वाला, मेढे के सामान नेत्र, पिंगल वर्ण, क्रोधी, दूसरो के धन को हड़पने वाला होता है।
जातक वासना युक्त, लालची, कटुभाषी, देखने में सुन्दर तीखे नाक-नक़्शे वाला होता है।
द्वितीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे शुक्र, चंद्र, शुक्र का प्रभाव है। राशि वृषभ 43।20 से 46।40 तक। नवमांश वृषभ। यह विषम स्थति, भौतिकवाद, क्रांति का द्योतक है।
जातक बड़ी आँखोवाला, भैसा जैसा मुंह वाला, ऊँची नाक, घने केश, वृहद कंधे व भुजा तथा कमर, गौरवर्णी, भद्र आदतो वाला, सुवक्ता, रोगी जैसा किन्तु जितेन्द्रिय होता है।
तृतीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे शुक्र, चंद्र, बुध का प्रभाव है। राशि वृषभ 46।40 से 50।00 तक। नवमांश मिथुन। यह वाणिज्य, रचना, लचीलापन, नम्यता, कर्कशता, सम्पत्ति का द्योतक है।
जातक स्थिर, सुन्दर नेत्र, कोमल शरीर, मोहक वाणी, माधुर्य और हास्य रस मे रत, निपुण, बातूनी होता है।
जातक ठोस भक्त, प्रशंसा के योग्य, दानी, अंकगणित निपुण, धार्मिक और प्रसन्न होता है।
चतुर्थ चरण - इसका स्वामी चन्द्र है। इसमे शुक्र, चंद्र, चन्द्र का प्रभाव है। राशि वृषभ 50।00 से 53।20 तक। नवमांश कर्क। यह भौतिक सुरक्षा, मातृपक्ष, स्वामित्व का द्योतक है।
जातक मृत पुत्र वाला, युवतियो मे रत, लम्बी नाक, विशाल नेत्र, बड़े अंग, बड़े पैर, स्वजनो का द्वेषी होता है।
जातक धनवान, दूसरो का मन समझने मे सशक्त, भविष्यवक्ता, बुद्धिमान, सन्तुलित जीवन वाला होता है।
आचर्यों ने चरण फल सूत्ररूप में कहा है लेकिन उसमे बहुत अंतर है।
यवनाचार्य : पहले चरण मे सौभाग्य, दूसरे चरण मे पीड़ा, तीसरे मे डरपोकपन, चौथे मे सत्यवादी होता है।
मानसागराचार्य : प्रथम चरण मे शुभ लक्षणवाला, द्वितीय मे विद्वान, तृतीय मे सौभाग्यशाली, चतुर्थ मे कुलभूषण होता है।
मर्गशिरा नक्षत्र चरण फल ।
प्रथम चरण - इसका स्वामी सूर्य है। इसमे शुक्र, मंगल, सूर्य का प्रभाव है। राशि वृषभ 53।20 से 56।40 अंश। नवमांश सिंह। यह स्थायीकरण, स्वयोजना, रचना का द्योतक है।
जातक व्याघ्र के सामान नेत्र, सुन्दर दांत, चौड़ी नाक, भूरे बाल, कड़े नख, अहंकारी, अल्पकर्मी बातूनी होता है।
जातक शिक्षित, मेघावी, होशियार, भावुक, अन्वेषक, आवेगी, सृजनात्मक होता है। पुरुष संतति की दुविधा होती है, कन्या संतति होती है। दाम्पत्य जीवन साधारण होता है।
द्वितीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे शुक्र, मंगल, बुध का प्रभाव है। राशि वृषभ 56।40 से 60।00 अंश। नवमांश कन्या। यह परिकलन, गणना, भेदभाव, फर्क, व्यंग का द्योतक है।
जातक सम्मानीय, अल्प साहसी, डरपोक, दुबला-पतला, जुआरी, कुंठाग्रस्त, धन संचयी दुःख से प्रलाप करने वाला होता है।
इस चरणोत्पन्न जातक प्रायोगिक, सामाजिक, गणितज्ञ, मनोरंजक, गायन और संगीत में रुचिवान अच्छा सैनिक होता है। यदि यह चरण पाप प्रभाव मे हो, तो जातक अपमिश्रण करने वाला होता है। परिवार मे छोटे-मोटे विरोधाभास होते रहते है। इसके साथ धोखा हो सकता है।
तृतीय चरण- इसका स्वामी शुक्र है। इसमे बुध, मंगल, शुक्र का प्रभाव है। राशि मिथुन 60।00 से 63।20 अंश। नवमांश तुला। यह दिमागी दौड़, सामाजिकता का द्योतक है।
जातक लम्बे धने रोम, बड़े ऊँचे कंधे व भुजा, ऊँची नाक, मयूर समान नेत्र, दूर्वा (घास) के सामान अस्तिया, श्याम वर्ण, पतले हस्त वाला होता है। टांगे लम्बी और पतली होती है।
जातक ज्यादा सोच-विचार करने वाला, सामाजिक रोमांटिक (प्रणय प्रेमी, कल्पना जीवी) उच्च जन संपर्क अधिकारी होता है। इनके एक से अधिक स्त्रियो से प्रेम प्रसंग होते है।
चतुर्थ चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे बुध, मंगल, मंगल का प्रभाव है। राशि मिथुन 63।20 से 66।40 अंश। नवमांश वृश्चिक। यह विद्ववता पूर्ण बहस, शक या अविश्वास, आध्यात्मिक उन्नति का द्योतक है।
जातक घट के सामान सिर वाला, नासिका के मध्य मे चोट लगना, धार्मिक, वाचाल, क्रियाशील, हिंसक, सेनापति होता है।
जातक अच्छा अन्वेषक, अत्यधिक सन्देह करने वाला, आवेगी होता है। इन्हे अच्छे परामर्शदाता की महत्वपूर्ण निर्णय लेने मे आवश्यकता होती है। यदि ये अपनी ऊर्जा का सदुपयोग करे तो ज्योतिषी, निवेशक, रचनात्मक लेखक, पादरी या पुरोहित हो सकते है।
आचर्यो ने चरण फल सूत्र रूप में कहा है लेकिन उसमे अन्तर बहुत है।
यवनाचार्य : मृगशीर्ष प्रथम चरण मे राजा, द्वितीय मे तस्कर, तृतीय मे भोगी, चतुर्थ मे धन-धान्य युक्त होता है।
मानसागराचार्य : पहले मे धनधान्यापार्जक, दूसरे मे पर स्त्री गामी, तीसरे मे भाग्यवान, चौथे मे निर्धन होता है।
⃝ इसके प्रथम और द्वितीय चरण वृषभ मे आते है अतएव जातक की संतान सुन्दर, मेघावी, सृजनात्मक, प्रचुर भौतिकता लाने वाली होती है।
⃝ इसके तृतीय और चतुर्थ चरण मिथुन मे आते है अतएव लेखन, जनवक्ता, प्रभावपूर्ण भाषण, जिज्ञासावृत्ति, अक्ल खोज प्रकट करते है।
⃝ स्त्री जातक गलत विचारो को व्यक्त करने में भी नही हिचकिचाति है इस कारण मित्र भी शत्रु बन जाते है।
आर्द्रा चरण फल
प्रथम चरण - इसका स्वामी गुरु है। इसमे बुध, राहु, गुरु का प्रभाव है। राशि मिथुन 66।40 से 70।00 अंश। नवमांश धनु। यह खोज-बीन, भौतिकवाद, प्रसन्नता का द्योतक है।
जातक रक्त वर्ण, समशरीर, सुन्दर नाक, लम्बा चेहरा, घनी तीखी भौहे वाला होता है। वाणी प्रभावी व चातुर्यपूर्ण होती है। जातक के मन मे हमेशा संक्षोभ होता है जिससे दुविधा के कारण कुछ निश्चित नही कर पता है अतः इस तूफान के निवारण के लिए ध्यान करना चाहिए।
द्वितीय चरण - इसका स्वामी शनि है। इसमे बुध, राहु, शनि का प्रभाव है। राशि मिथुन 70।00 से 73।20 अंश। नवमांश मकर। यह भौतिकवाद, निराशा, कष्ट का द्योतक है।
जातक की भौंहे सुन्दर, बदन इकहरा, हल्का कृष्ण वर्ण, छोटा चहेरा, दीर्घ वक्ष, यौन वासना युक्त होता है। यह चरण अत्यधिक भ्रष्टाचार का द्योतक है। आर्द्रा नक्षत्र की ऋणात्मक विशेषता इस चरण मे सबसे ज्यादा होती है परन्तु जातक व्यवहारिक और भौतिक होता है। बुध और शनि शुभ स्थान में हो, तो भौतिकता कड़ी मेहनत के 32 वर्ष की उम्र पश्चात प्राप्त होती है।
तृतीय चरण - इसका स्वामी शनि है। इसमे बुध, राहु, शनि का प्रभाव है। राशि मिथुन 73।20 से 76।40 अंश। नवमांश कुम्भ। यह विज्ञान, शोध, प्रोत्साहन, मानसिक गतिविधि का द्योतक है।
जातक बड़ा मुंह, बड़ा वक्ष, मोटी कमर, लम्बी भुजा वाला, स्थूल सर वाला, कपटी, दुष्ट, उभरी शिराएं वाला, आँखो से मन की बात जानना कठिन होता है। जातक सामाजिक कार्यकर्त्ता, व्यक्तियो का शरीरिक रूप से मददगार, कर्मठ, तेज दिमाग वाला होता है।
चतुर्थ चरण - इसका स्वामी गुरु है। इसमे बुध, राहु, गुरु का प्रभाव है। राशि मिथुन 76।40 से 80।00 अंश। नवमांश मीन। यह संवेदना, अनुकम्पा, शांति का द्योतक है।
जातक मादक नयन, वाचाल, चौड़ा ललाट, बलिष्ठ शरीर, गुलाबी होंठ, पीले दांत, जुआरी, दुष्ट व निरर्थक प्रलापी होता है। जातक भावुक, हास्यास्पद, दानी, बिना हिचकिचाहट के दूसरो धन से मददगार, स्थिर दिमाग, लाभदायक गतिविधियो मे सलग्न रहता है।
आचार्यो ने चरण फल सूत्र रूप मे कहा है परन्तु फलित मे अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : आर्द्रा के प्रथम चरण मे खर्चीला, द्वितीय मे दरिद्री, तृतीय मे अल्पायु, चतुर्थ मे तस्कर होता है।
मानसागराचार्य : आर्द्रा के पहले पाद मे कटुभाषी, दूसरे मे धनवान, तीसरे मे भाग्यवान चौथे मे धन-धन्य भोगी होता है।
पुनर्वसु नक्षत्र चरण फल ।
प्रथम चरण - इसके स्वामी मंगल है। इसमे बुध, गुरु, मंगल का प्रभाव है। मिथुन 80।00 से 83।20 अंश । नवमांश मेष। यह गति, साहसिक / जोखिम के काम, दर्शन, आध्यात्मिक मार्ग, मित्रता का द्योतक है।
जातक ताम्र वर्ण, अरुण और समुन्नत नेत्र, विशाल वक्ष, शिक्षा व कला मे निपुण, मज़ाकी स्वाभाव का होता है।
जातक कुशल, गुणी, सृजनात्मक होता है। कार्य प्रारम्भ मे जल्दबाज बाद मे सामान्य और सफल होता है। ये आसानी से मित्र और महिला मित्र बना लेते है। इनकी संतान समर्पित होती है। बिना ओरो को नुकसान पहुंचाये धन कमाने मे माहिर होते है।
द्वितीय चरण - इसके स्वामी शुक्र है। इसमे बुध, गुरु, शुक्र का प्रभाव है। मिथुन 83।20 से 86।40 अंश। नवमांश वृषभ। यह स्थाईत्व, भौतिकता, यात्रा का द्योतक है।
जातक श्याम वर्णी, मोटा शरीर, लम्बे श्वेत नेत्र, मनस्वी (मनन, चिंतन, विचार) मधुर भाषी कलाविद होता है। जातक संपत्ति का संग्रहक, बिना मेहनत किये कमाने मे कलाविद, संचार कुशल, सफल व्यापारी होता है।
तृतीय चरण - इसके स्वामी बुध है। इसमे बुध, गुरु, बुध का प्रभाव है। मिथुन 86।40 से 90।00 अंश। नवमांश मिथुन। यह कल्पना, मानसिक केंद्र, विज्ञान का द्योतक है।
जातक गोल श्वेत नेत्र, सुन्दर देह निपुण, मेघावी, रति क्रीड़ा दक्ष, कला साहित्य विज्ञान का ज्ञाता होता है। इस चरण मे धन अर्जित करने की ऊर्जा होती है। जातक उच्च शिक्षा प्राप्त, साहित्य प्रेमी, संधर्ष से धनी होता है।
चतुर्थ चरण - इसके स्वामी चन्द्र है। इसमे चन्द्र, गुरु,चंद्र का प्रभाव है। कर्क 90।00 से 93।00 अंश। नवमांश कर्क। यह माँ बनना, मातृत्व, फैलाव, पोषण का द्योतक है।
जातक स्वच्छ, सुन्दर गौर वर्ण, बड़ा पेट अथवा कमर. दिव्य आभा युक्त मुखड़ा, बड़े नेत्र, छोटी भुजा होती है। इस पाद में पुनर्वसु के सबसे घनात्मक प्रभाव होते है। जातक अत्यधिक देख-भाल करने वाला, दानी, आध्यत्मिक ज्ञान के लिए परिश्रमी, रचनात्मक लेखक, नाम और शोहरत वाला होता है।
आचर्यों ने चरण फल सूत्र रूप मे कहा है परन्तु अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : पुनर्वसु के प्रथम चरण मे सुखी, द्वितीय मे विद्वान, तृतीय मे रोगी, चतुर्थ में मृदुभाषी होता है।
मानसागराचार्य : पुनर्वसु के पहले चरण मे चोर, दूसरे मे महात्मा, तीसरे मे देव-गुरु भक्त, चौथे मे धनी होता है।
पुष्य नक्षत्र चरण फलादेश।
प्रथम चरण - इसका स्वामी सूर्य है। इसमे चन्द्र, शनि, सूर्य का प्रभाव है। कर्क 93।20 से 96।40 अंश। नवमांश सिंह। यह तीव्र प्रकाश का आकर्षण, उपलब्धता, सम्पदा, सकारात्मकता, पैतृक गर्व का द्योतक है।
जातक लाल गुलाबी कान्ति वाला, बिलाव (बिल्ली) के सामान चेहरा वाला, लम्बे हाथ तथा पैर, विवाह के लिए प्रवासी, कला प्रिय होता है।
जातक जबाबदारी के लिए विश्वनीय, व्यवसायिक जीवन के लिए गंभीर, परिवार के प्रति चिन्तित, विवाह मे अड़चन, दाम्पत्य जीवन दुःखद होता है। कोई-कोई जातक मजदुर होता है।
द्वितीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे चन्द्र, शनि, बुध का प्रभाव है। कर्क 96।40 से 100।00 अंश। नवमांश कन्या। यह धैर्य, निरतन्तर उद्योग, शुक्र के आलावा सभी ग्रहो के लाभ का द्योतक है।
जातक सुन्दर नेत्र, सुकुमार कोमल देह, गौर वर्ण, युवती के सामान सुडोल व पुष्ट अंगो वाला, मधुर वाणी युक्त, बुद्धिमान, अालसी लेकिन प्रभावी वक्ता होता है।
नौकर समान कार्यकारी, स्त्री या पुरुष जातक निज सचिव या शासकीय नौकर होते है। स्वास्थ सम्बन्धी बाधा और शरीरिक गड़बड़ी होती है।
तृतीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे चन्द्र, शनि, शुक्र का प्रभाव है। कर्क 100।00 से 103।20 अंश। नवमांश तुला। यह आराम, सुविधा, समाज प्रियता, अनुकूलता, अनुरूपता, सतही प्रगाढ़ता का द्योतक है।
जातक श्याम वर्णी, स्थूल देह, धनुषाकार भौंहे, सुंदर नाक व आंख, विलासी, क्षीणभाग्य, जाति बन्धु का हित करने वाला होता है।
जातक सामाजिक, यौन क्रिया का इच्छुक, पारिवारिक जीवन की अपेक्षा व्यावसायिक जीवन चाहने वाला, जीवन मे आराम और सुविधा भोगने वाला कार्य के प्रति लगनशील होता है।
चतुर्थ चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे चन्द्र, शनि, मंगल का प्रभाव है। कर्क 103।20 से 106।40 अंश। नवमांश वृश्चिक। यह स्वर्गीय ज्ञान, अत्याचार, जुल्म, निर्भरता का द्योतक है।
जातक घड़ियाल / घंटे के समान सिर वाला, बाकी तिरछी भौंहे, लंबी भुजाए, सेवारत, अल्पबुद्धि, दुष्कर्मी, असहनशील होता है।
यह चरण विशेष शुभ नही होता, इसमे नक्षत्र के सभी ऋणात्मक लक्षण होते है। जातक की प्रारम्भिक शिक्षा मे स्वास्थ के कारण व्यवधान, युवावस्था मे प्रेम प्रसंग के कारण शिक्षा मे परेशानी होती है। 36 वर्ष की उम्र तक व्यवसाय मे रूकावट अड़चने आती है।
आचार्यो ने चरण फल सूत्र रूप मे कहा है, लेकिन अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : पुष्य के पहले चरण मे दीर्घायु, दूसरे मे तस्कर, तीसरे मे योगी, चौथे मे बुद्धिमान होता है।
मानसागराचार्य : पुष्य पहले चरण मे राजा, दूसरे में मुनियो मे श्रेष्ट, तीसरे मे विद्वान, चौथे मे धर्मात्मा होता है।
आश्लेषा नक्षत्र चरण फल ।
प्रथम चरण - इसका स्वामी गुरु है। इसमे चन्द्र, बुध, गुरु का प्रभाव है। कर्क 106।40 से 110।00 अंश। नवमांश धनु। यह भय, रोग, शत्रु का द्योतक है। जातक लम्बा, स्थूल देह, सुन्दर नेत्र और नाक, गौर वर्ण, लबे-चौड़े दांत, वक्ता प्रतापी होता है।
स्त्री अथवा पुरुष जातक लक्ष्य पाने के लिए मेहनती होते है। ये शत्रु को वश मे करने की कला के ज्ञाता, साथियो और वरिष्ठो से प्रतिस्पर्धा मे विशिष्ट होते है।
द्वितीय चरण - इसका स्वामी शनि है। इसमे चन्द्र, बुध, शनि का प्रभाव है। कर्क 110।00 से 113।20 अंश। नवमांश मकर। यह तृप्ति, लोगो से सौदा या व्यवहार, ठगबाजी, ईच्छा, स्वत्व उन्मुखता, वित्त का द्योतक है। जातक छितरे अल्प रोम युक्त, स्थूल देह, दीर्घ सर व जांघ, रक्षक अथवा चौकीदार, कौआ के सामान चौकन्ना, स्फूर्तिवान होता है।
नक्षत्र के नकारात्मक लक्षण इस चरण मे देखे जाते है। जातक अत्यधिक मक्कार, बेहिचक दूसरो के लक्ष्य को रोकने वाला, अविश्वनीय होता है। जातक को काबू मे रखना अत्यंत दुष्वार होता है। इसका खुद का मकान नही होता है यदि होता भी है तो किराये के मकान मे रहता है।
तृतीय चरण - इसका स्वामी शनि है। इसमे चन्द्र, बुध, शनि का प्रभाव है। कर्क 113।20 से 116।40 अंश। नवमांश कुम्भ। यह गोपनीयता, छुपाव, योजना, माता पर कुप्रभाव का द्योतक है। जातक घड़ियाल के सामान सिर वाला, सुन्दर मुख व भुजा, कछुवे के समान गति, चपटी नाक, श्यामवर्णी, कुशिल्पी होता है। इस पाद मे जातक विश्वनीय होता है। परन्तु दूसरे सभी लक्षण दूसरे पाद जैसे ही होते है। इन्हे चर्म रोग रहता है।
चतुर्थ चरण - इसका स्वामी गुरु है। इसमे चन्द्र, बुध, गुरु का प्रभाव है। कर्क 116।40 से 120।00 अंश। नवमांश मीन। यह भ्रम, अति प्रयास या संघर्ष (ग्रीक पौराणिकता अनुसार इसमे सर्प का कत्ल किया जाता है) खतरनाक धोखा, आमना-सामना, पिता के स्वास्थ पर दुष्प्रभाब का द्योतक है। जातक गौरवर्ण, मस्य सामान नेत्र, कोमल उदर, बड़ा वक्ष, लम्बी दाड़ी, पतले होंठ, बड़ी जांघे पतले घुटने वाला होता है।
इस पाद का जातक दूसरो को शिकार बनाने के बजाय खुद शिकार होता है। जीवन में सम्बन्ध बनाये रखने के लिये कठिन परिश्रम करता है। नक्षत्र दुष्प्रभाव मे हो, तो गंभीर मनोरोग होते है।
नक्षत्रो के चरण फल आचर्यों ने सूत्र रूप मे कहे है लेकिन अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : आश्लेषा के प्रथम चरण मे संतान हीन, द्वितीय मे पराया काम करने वाला, नौकर या एजेन्ट, तृतीय मे रोगी, चतुर्थ मे गण्डांत रहित भाग मे सुभग या सौभाग्यशाली होता है। गण्डान्त मे अल्पायु होता है।
मनसागराचार्य : पहले चरण मे चोर, दूसरे मे निर्धन, तीसरे मे देश मे पूज्य, चौथे मे कुल भूषण होता है।
मघा नक्षत्र चरण फल ।
प्रथम चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे सूर्य, केतु, मंगल का प्रभाव है। सिंह 120।00 से 123।20 अंश। नवमांश मेष। यह शक्ति, शूरता, नेतृत्व, दया का द्योतक है।
जातक मंदाग्नि से ग्रस्त, साहसी, नाशिक का अग्र लाल भाग, बड़ा सिर, उन्नत मांशल वक्ष, शूरवीर होता है।
यह पाद जातक का बहुत मजबूत स्वभाव दर्शाता है। जातक अत्यंत शक्तिशाली, अहंमानी, उच्च स्थिति प्राप्तक, विख्यात न्यायाधीश या अभिभाषक, अधिकार युक्त होता है। इसे कट्टर दुश्मनी कारक अधिक शक्ति के उपयोग पर नियंत्रण रखना चाहिए।
द्वितीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे सूर्य, केतु, शुक्र का प्रभाव है। सिंह 123।20 से 126।40 अंश। नवमांश वृषभ। यह चेतना, कर्तव्य, संगठन, अनुग्रह का द्योतक है।
जातक चौड़ा ललाट, चार कोने वाला शरीर, छोटे नेत्र, लम्बी भुजा, उन्नत वक्ष, लम्बी ऊंची नाक वाला, अल्प क्रोधी होता है। यह पाद व्यवहार मे शालीनता और निम्न स्तरीय अहंकार को दर्शाता है। इसके पास अधिकार और शक्ति होते हुए भी कूटनीति से भौतिक लक्ष्य को प्राप्त करता है। इस कारण जातक कुटनीतिज्ञ, राजनीतिज्ञ, प्रबंधक, प्रशासक आदि होता है।
तृतीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे सूर्य, केतु, बुध का प्रभाव है। सिंह 126।40 से 130।00 अंश। नवमांश मिथुन। यह विद्ववता, खोज, रचनात्मकता का द्योतक है।
जातक घने रोम वाला, चकोर, ऊंची नाक, लम्बी भुजा, गोल गले वाला, मोह ममता से परे होता है। जातक अत्यंत मेघावी, समय निकाल कर मित्रो मे व्यतीत करने वाला, कार्यालय समय बाद तनाव मुक्ति का ज्ञाता होता है। यह अति उच्च शिक्षा प्राप्त बुद्धि जीवी होता है।
चतुर्थ चरण - इसका स्वामी चन्द्र है। इसमे सूर्य, केतु, चन्द्र का प्रभाव है। सिंह130।00 से 133।20 अंश। नवमांश कर्क। यह संस्कार, पैतृकता, खुशहाली, दान का द्योतक है।
जातक चिकनी तैलीय त्वचा वाला, गौर वर्ण, लम्बे सुन्दर नेत्र, बेसुरी आवाज वाला, कोमल केश, मेढक के सामान पेट, कम खुराक वाला होता है। अधिकार प्राप्त जातक के लिए यह शुभ नही है। महत्वपूर्ण निर्णय के समय यह भावुक होकर अपने लगाव के प्रति झुक जाता है। यह छान-बीन करने वाला पुरातत्ववेत्ता होता है।
आचर्यों ने चरण फल सूत्र रूप मे कहा है परन्तु फलादेश मे बहुत अंतर है।
यवनाचार्य : मघा के पहले चरण मे पुत्रहीन, दूसरे मे पुत्रवान, तीसरे मे रोगी, चौथे मे विद्वान, बुद्धिमान होता है।
मानसागराचार्य : पहले चरण मे राजमान्य, दूसरे मे धनवान, तीसरे मे तीर्थयात्री, चौथे मे पुत्रवान होता है।
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र चरण फल ।
प्रथम चरण - इसका स्वामी सूर्य है। इसमे सूर्य, शुक्र, सूर्य का प्रभाव है। सिंह 133।20 से 136।40 अंश। नवमांश सिंह। यह स्व प्रतिष्ठा, वैभव, शान का द्योतक है। जातक घड़ियाल समान सिर, अल्प केश, श्वेत आंखे, लोमड़ी सामान शरीर, लम्बा पेट, साहसी, मोटे चौड़े तीखे दांत वाला होता है।
जातक साहसी, पत्नी युक्त, माता का भक्त होता है। विपरीत लिंग से अड़चन, रसायन या हॉस्पिटल से आजीविका होती है। पुरुष जातक कच्चे माल का व्यापारी, जीवन के उत्तरार्ध मे सुखी, धनार्जन और व्यापार के लिए यात्राएं करने वाला होता है।
द्वितीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे सूर्य, शुक्र, बुध का प्रभाव है। सिंह 136।40 से 140।00 अंश। नवमांश कन्या। यह धैर्य, संयम, व्यापार, उद्योग का द्योतक है। जातक अल्प रोम, कोमल मटमैले नेत्र, लम्बा, श्याम वर्णी, स्त्री सुलभ सौन्दर्य युक्त, चतुर, शेखी मारने वाला, कार्य साधने में निपुण होता है।
जातक महा क्रोधी, जीवन के मध्य मे वासना युक्त, जीवन के अंत मे शांत और चिंता मुक्त होता है। पुरुष जातक नम्र, स्त्रियो का शौकीन, शराबी, नृत्य संगीत में रुचिवान, शिल्पकार, परिवार से दूर रहने वाला होता है।
तृतीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे सूर्य, शुक्र, शुक्र का प्रभाव है। सिंह 140।00 से 143।20 अंश। नवमांश तुला। यह सृजन, तनाव मुक्ति, समान विचार, यात्रा, परिष्कृत, प्रशंसा, परामर्श का द्योतक है। जातक लम्बा मुंह, लम्बा मोटा सिर, हृष्ट-पुष्ट, मांसल देह, श्याम वर्ण, घने रोम, स्त्रियो से कपटी, कूटनीतिज्ञ, ठग, कठोर भाषी होता है।
जातक आक्रामक, संताप रहित, अनेक जबाबदारियो से परिपूर्ण होता है। घर मे चोरी होती है, परन्तु नुकसान कम होता है या चोरी गया मॉल मिल जाता है। पुरुष जातक प्रहार का शौकीन, बॉक्सर या पहलवान, वंश परम्परा का आदर करने वाला, परिवार और रिस्तेदारो का घनिष्ट, जीवन के अंत मे अकेला होता है।
चतुर्थ चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे सूर्य, शुक्र, मंगल का प्रभाव है। सिंह 143।20 से 146।40 अंश। नवमांश वृश्चिक। यह लालसा, वीरता, रंग रूप का द्योतक है। जातक के जीवन मे कलह विशेष होता है। यदि जन्मांग मे सूर्य गुरु अच्छी स्थति म??