दस दिशाओं के 10 दिग्पाल, जानिए कौन हैं
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पुराणानुसार दसों दिशाओं का पालन करनेवाला देवताओं को दिक्पाल की संज्ञा दी गई है। भगवान ब्रह्मा जी के द्वारा 8 दिशाओं का कार्य-संचालन भिन्न देवताओं व यक्षों को दिया गया तो 2 दिशा का दायित्व स्वयं रख लिया गया, इसलिये इन्हें "अष्ट-दिक्पाल" के रूप में संज्ञा दी गई है। यथा-पूर्व के इन्द्र, अग्निकोण के वह्रि, दक्षिण के यम, नैऋत्यकोण के नैऋत, पश्चिम के वरूण, वायु कोण के मरूत्, उत्तर के कुबेर, ईशान कोण के ईश, ऊर्ध्व दिशा के ब्रह्मा और अधो दिशा के अनंत (शेषनाग) दिक्पाल सुनिश्चित किऐ गए।
दिक्पाल की संख्या 8 ही मानी गई है, शेष दो दिशा का स्वामित्व ब्रह्मा जी के अधिकार में है।
शास्त्रानुसार हमारे वायुमंडल में दिशाएं 10 होती हैं जिनके नाम और क्रम इस प्रकार हैं- उर्ध्व, ईशान, पूर्व, आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर और अधो। एक मध्य दिशा भी होती है। इस तरह कुल मिलाकर 11 दिशाएं हुईं। प्रत्येक दिशा का एक देवता नियुक्त किया गया है जिसे 'दिग्पाल' कहा गया है अर्थात दिशाओं के पालनहार। दिशाओं की रक्षा करने वाले।
10 दिशा के 10 दिग्पाल
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👉 उर्ध्व के ब्रह्मा,
👉 ईशान के शिव व ईश,
👉 पूर्व के इंद्र,
👉 आग्नेय के अग्नि या वह्रि,
👉 दक्षिण के यम,
👉 नैऋत्य के नऋति,
👉 पश्चिम के वरुण,
👉 वायव्य के वायु और मारुत,
👉 उत्तर के कुबेर और
👉 अधो के अनंत।
1.उर्ध्व दिशा👉 उर्ध्व दिशा के देवता ब्रह्मा हैं। इस दिशा का सबसे ज्यादा महत्व है। आकाश ही ईश्वर है। जो व्यक्ति उर्ध्व मुख होकर प्रार्थना करते हैं उनकी प्रार्थना में असर होता है। वेदानुसार मांगना है तो ब्रह्म और ब्रह्मांड से मांगें, किसी और से नहीं। उससे मांगने से सब कुछ मिलता है।
वास्तु👉
घर की छत, छज्जे, उजालदान, खिड़की और बीच का स्थान इस दिशा का प्रतिनिधित्व करते हैं। आकाश तत्व से हमारी आत्मा में शांति मिलती है। इस दिशा में पत्थर फेंकना, थूकना, पानी उछालना, चिल्लाना या उर्ध्व मुख करके अर्थात आकाश की ओर मुख करके गाली देना वर्जित है। इसका परिणाम घातक होता है।
2. ईशान दिशा👉 पूर्व और उत्तर दिशाएं जहां पर मिलती हैं उस स्थान को ईशान दिशा कहते हैं। वास्तु अनुसार घर में इस स्थान को ईशान कोण कहते हैं। भगवान शिव का एक नाम ईशान भी है। चूंकि भगवान शिव का आधिपत्य उत्तर-पूर्व दिशा में होता है इसीलिए इस दिशा को ईशान कोण कहा जाता है। इस दिशा के स्वामी ग्रह बृहस्पति और केतु माने गए हैं।
वास्तु अनुसार👉
घर, शहर और शरीर का यह हिस्सा सबसे पवित्र होता है इसलिए इसे साफ-स्वच्छ और खाली रखा जाना चाहिए। यहां जल की स्थापना की जाती है जैसे कुआं, बोरिंग, मटका या फिर पीने के पानी का स्थान। इसके अलावा इस स्थान को पूजा का स्थान भी बनाया जा सकता है। इस स्थान पर कूड़ा-करकट रखना, स्टोर, टॉयलेट, किचन वगैरह बनाना, लोहे का कोई भारी सामान रखना वर्जित है। इससे धन-संपत्ति का नाश और दुर्भाग्य का निर्माण होता है।
3. पूर्व दिशा👉 ईशान के बाद पूर्व दिशा का नंबर आता है। जब सूर्य उत्तरायण होता है तो वह ईशान से ही निकलता है, पूर्व से नहीं। इस दिशा के देवता इंद्र और स्वामी सूर्य हैं। पूर्व दिशा पितृस्थान का द्योतक है।
वास्तु👉
घर की पूर्व दिशा में कुछ खुला स्थान और ढाल होना चाहिए। शहर और घर का संपूर्ण पूर्वी क्षेत्र साफ और स्वच्छ होना चाहिए। घर में खिड़की, उजालदान या दरवाजा रख सकते हैं। इस दिशा में कोई रुकावट नहीं होना चाहिए। इस स्थान में घर के वरिष्ठजनों का कमरा नहीं होना चाहिए और कोई भारी सामान भी न रखें। यहां सीढ़ियां भी न बनवाएं।
4. आग्नेय दिशा👉 दक्षिण और पूर्व के मध्य की दिशा को आग्नेय दिशा कहते हैं। इस दिशा के अधिपति हैं अग्निदेव। शुक्र ग्रह इस दिशा के स्वामी हैं।
वास्तु👉
घर में यह दिशा रसोई या अग्नि संबंधी (इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों आदि) के रखने के लिए विशेष स्थान है। आग्नेय कोण का वास्तुसम्मत होना निवासियों के उत्तम स्वास्थ्य के लिए जरूरी है।